Wednesday, August 31, 2011

दुसरी आजादी सब जीते पर जनता हारी

28 अगस्त दो प्यारी सी छोटी बच्चीयो इकरा और सिमरन के हाथो अन्ना ने नारियल पानी पीया. उनके साथियों को जोश आया माईक पकड़ा और दहाड़ लगाई हमने आधी लड़ाई जीत ली. बस यही बात मुझे समझ नहीं आयी किसी को भी पता हो तो मुझे भी बता दे केसे? क्या कानून बन गया? क्या जूस पीते ही करप्शन आधा खत्म हो गया? क्या करप्शन से जनता को निजात मिल गई? सारी समस्याए तो ज्यों के त्यों हैं? एक कहावत है कि जब तक जाहिल हैं तब तक हुनरमंदों की रोटी चलती रहेगी। यह कहावत एक बार फिर इस रूप में चरित्रार्थ हुई है कि जब तक तथाकथित सिविल सोसाइटी है तब तक अन्ना, केजरीवाल, भूषण, मनीष सिसौदिया और किरन बेदी की दुकान चलती रहेगी। तेरह दिन चले अनशन ड्रामा के बाद दिल्ली के रामलीला मैदान  और इंडिया गेट में सिविल सोसाइटी के चले जश्न के बीच लोग इस बात को भूल गए कि इस तमाशे में सरकार भी जीती, विपक्ष भी जीता, अन्ना और उनकी टीम भी जीते लेकिन हारी सिर्फ और सिर्फ इस देश की मजबूर जनता। याद होगा अरविन्द केजरीवाल ने रामलीला मैदान से हुंकार भरी थी कि सरकार अपना कमजोर बिल वापस ले और उनका ‘जन लोकपाल’ बिल पेश करे। सरकार ने न तो अपना बिल वापस लिया और न उनका जनलोकपाल बिल पेश किया। बल्कि जो हुआ ठीक अन्ना टीम की मांगो के विपरीत।

इसमें कोई दो राय नहीं कि एक अच्छे व्यक्ति के नाते हम सब अन्ना हजारे की इज्जत करते हैं पर जो कहा जा रहा है वो कितना सही है यह आज सबसे बड़ा सवाल है। अब तक सिर्फ तीन मांग संसद में पेश हुई हैं। कानून में शामिल नहीं हुई तो फिर कैसे अन्ना टीम और देश ने आधी लड़ाई जीती?  हमें तो लगता है जनता फिर ठगी गई। दूसरों को नहीं लगता तो आने वाला समय बता देगा।  अन्ना ने अनशन क्यों किया था? जनलोकपाल बिल के लिए जो उनकी टीम ने ड्राफ्ट किया था। कहा था-इसे तीस अगस्त तक पास नहीं किया तो..... क्या पास हुआ? क्या स्थाई समिती में केवल अन्ना टीम का ही ड्राफ्ट गया ? फिर बोले-मेरी ये तीन बातें ही शामिल कर लो- उस पर संसद में सिर्फ और सिर्फ चर्चा हुही है और उस चर्चा के निष्कर्ष को स्थायी समिती के पास विचार हेतु भेजा गया है, कानून तो नहीं बना। जनता अन्ना की जिद के लिए तो नहीं गई थी। वो गई थी करप्शन और महंगाई से परेशान होकर। मिला क्या? क्या संसद को झुकाना ही मकसद था? क्या संसद को अपनी ताकत दिखाना ही मकसद था? फिलहाल वो आधी लड़ाई जीतने पर पूरा जश्न मना रहे हैं। दोस्त ये बोलकर, एक शुरुआत हूही है और देश अब जाग गया है कहकर हमारा मुंह बंद कर रहे हैं। कह रहे हैं चुप रहो। सब उधर जा रहे हैं तुम्हें क्या एतराज है? नहीं एतराज तो कुछ नहीं। पर ये तो बताये की किस चीज की शुरुआत हो गयी है और कौन लोग जाग गए और ये कैसे निर्दयी लोग है जिनको जगाने के लिए एक 74 साल के बुजुर्ग को भूखे बैठ कर अपने शरीर को कष्ट देना पड़ता है, और जागने से होने क्या वाला है?

15 अगस्त को वो कह रहे थे आजादी की दूसरी लड़ाई शुरू। 28 अगस्त को कह रहे हैं कि आधी लड़ाई हमने जीत ली।  क्या 13 दिन में उनके अनशन से आधे संकट इस देश और इस जनता के खत्म हो गए। अगर ऐसा है तो फिर 13 दिन उन्हें अनशन पर लगे हाथ और बैठ ही जाना चाहिए था ताकि सारे रोग सारी समस्याए ही खत्म हो जाती। आधी नहीं पूरी लड़ाई फतह हो जाती । ये देश फिर सोने की चिड़िया बन जाता। 12 दिन के अनशन का उन पर वेसे भी कोई खास असर दिखा नहीं, सिवाए 7 वे दिन के जब उनके डाक्टरों के मुताबिक तबीय काफी बिगड़ गयी थी। 12 वे दिन भी ,जो जोश उनमे दिख रहा था उससे साफ़ था और 13 दिन तो वो आराम से झेल ही जाते। क्योंकी अन्ना जी ने अपनी उर्जा लालू प्रशाद यादव की तरह गृहस्त जीवन में तो बर्बाद की नहीं इसलिए देश के लिए,गांधी के लिए, जनता के लिए वो और 13 दिन आराम से बैठ ही सकते थे। कम से कम ये देश पूरा आजाद तो होता। उनकी नजर में अब तो हम आधे गुलाम हैं। अहम् सवाल यह है कि देश के नवजवान वर्ग को ये झूठे सब्जबाग दिखाए गये थे और प्रचारित किया गया था कि ये आज़ादी की दूसरी लड़ाई है। आजादी की पहली लड़ाई के बाद तो देश को विदेशी शासन से आजादी मिली थी लेकिन इस तथाकथित दूसरी लड़ाई से हासिल क्या हुहा? क्या देश को दूसरी आजादी मिल गयी? क्या आजादी की पूरी लड़ाई मुकम्मल हो गयी? क्या इस तरह सीधे सीधे नौजवानों और देश की भावनाओं के साथ अन्ना टीम ने छल नहीं किया है ???

करप्शन असली मुद्दा बना। सारी दुनिया ने देखा। हम मानते हैं पर ये रोग केवल और केवल अन्ना टीम के एक बिल से दूर हो जाएगा? बीमारी की अगर  तह तक नहीं जाओगे तो मरीज कैसे स्वस्थ होगा? असली बीमारी कहां है? अगर जमीनी और आम आदमी की बात की जाए तो करप्शन के जितने रास्ते सब जानते हैं उसके अलावा एक सबसे बड़ा रास्ता और है और वो है आम आदमी या गरीब आदमी सहूलियत खोजता है। वो चार घंटे लाइन में लगना पसंद नहीं करता। चार दिन किसी काम के पूरा होने का इंतजार नहीं करता। सही प्रक्रिया के तहत काम कराना इसलिए नहीं चाहता कहीं उसे थोड़े शारीरिक कष्ट ना उठाने पड़ें। वो हाथ में नोट लेकर निकलता है और काम करने वाले के मुहं खोलने से पहले ही वो हथेली खोल देता है। मोल दे देता है। इसे कैसे अन्ना और उनकी टीम ठीक करेगी? इस देश में कितने आयोग हैं? क्या कोई बता सकते है? कितने कानून बन चुके हैं लागू हों चुके हैं। उनके बनने और लागू होने से ज्यादा जरूरी है उन्हें बदलना जिनके लिए वो बने हैं। वहां झूठ का बोलबाला है और रिश्वत लेने वालों को कहा जाता है कि उनका मुंह काला है। जनता के चरित्र को सुधारने की जरूरत है अन्ना जी। सबको अपने जैसा बना दीजिए फिर किस बिल की जरूरत पड़ेगी। मैं अन्ना-तुम अन्ना-वो अन्ना फला अन्ना । क्या टोपी पहनने और बोलने से सारे अन्ना हो गए? खेर देश को कुछ मिले या न मिले देश की जनता के सपने पूरे हो या न हो अन्ना को दुसरे गाँधी का ख़िताब मिल गया और वो सड़क से मेदानता तक पहूच गए ये कम उपलब्धी नहीं है अन्ना की.

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